समंदर पार
हमे लगता था समंदर पार
जो एक दरिया सा बहता है
जहां रहतीं हैं कुछ परियाँ
जहां नग़मा सा बहता है
मिलोगी तुम वहीं पर ही
किसी फूलों के झूले पर
मगर ये सोच का दरिया
बड़ा ही ख़ुश्क दिखता है
न परियां है न ही गुल हैं
यहां बस धुन्ध ही छाई है
तेरी यादों की पुरवाई से
निकल कर नज़्म आई है
तेरी खुशबू ही लाई है
तुझे क्यों ये नही लाई