समंदर का खारा पानी
एक दिन बोझिल होकर कहता है ,समंदर से खारा पानी।
क्यों सूरज समेट लेता है ,इस धरती से सारा पानी।
मेरे कुछ सगे मनुष्य की आंखों में क्यों रहते हैं?
मैं ठहरा रहता हूँ वो अनायास क्यों बहते है?
नदियों में हमेशा बहता रहता है ये आवारा पानी।
एक दिन बोझिल होकर कहता है ,समंदर से खारा पानी।
मुझमें आकर समा ही जाता है ,नदियों का ये पानी।
फिर मेरे सगों ने मानव के आंखों में ,रहने की क्यो ठानी।
वो भी जाकर किसी से क्यो नही मिलता,
क्या वो नही रह गया ,मेरा अपना दुलारा पानी।
एक दिन बोझिल होकर कहता है ,समंदर से खारा पानी।
वो खुशी में निकलता है और गम में निकलता है।
कभी बहुत ज्यादा निकलता है कभी कम निकलता है।
क्या हो गया उसको, क्यो हो गया है गँवारा पानी।
एक दिन बोझिल होकर कहता है समंदर से खारा पानी।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी