समंदर अभी तक भी हारा नहीं है
छंद- वाचिक भुजंगप्रयात
मापनी- 122 122 122 122
पदांत- नहीं है
समांत- आरा
समंदर अभी तक, भी’ हारा नहीं है.
उसे चाँद से कम, गवारा नहीं है.
रही उसकी’ चाहत, सदा चाँद ही की,
कभी चाँदनी को पुकारा नहीं है.
किया जिसने’ रोशन, है’ जीवन किसी का,
मिला उसको’ टूटा सितारा नहीं है.
जो’ गहरे में’ जाकर, ले’ आते हैं’ मोती,
उन्हें जल समंदर, का’ खारा नहीं है.
चला है जो’ हरदम, ही’ नेकी के’ पथ पर,
कभी भी वो’ इंसान हारा नहीं है.
नहीं जो चला है, समय के मुताबिक,
जमाने ने’ उसको, सँवारा नहीं है.
अकर्मण्य बन के, जो’ जीता रहा है,
वो’ बोझिल है’ जग पर, बे’चारा नहीं है.
नोट- लय के आधार पर गुरु वर्णों पर
मात्रा पतन के लिए चिह्न (‘) लगाया है.