‘सब वैसा ही है सिवाय तुम्हारे’
सब वैसा ही है यहाँ जैसा तुम छोड़कर निकल पड़े थे। तुम्हारे कपड़े प्रैस करके रखे हैं । रोज नया अखबार तुम्हारी टेबल पर सजाते देते हैं। शाम के वक्त सज धजकर द्वार पर बार -बार आते हैं, तुम्हारे स्वागत में मंद मुस्कान बिखेरने को। तुम्हारा मन-पसंद भोजन सजा रहता है टेबल पर। सब वैसा ही है।पर….एक जगह खाली लगती है…वो कब भरेगी? कब लौटौगे?