सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं
कोई तो निकल आएगा सरबाज़-ए-मोहब्बत
दिल देख रहे हैं वो जिगर देख रहे हैं
कुछ देख रहे हैं दिल-ए-बिस्मिल का तड़पना
कुछ ग़ौर से क़ातिल का हुनर देख रहे हैं
पहले तो सुना करते थे आशिक़ की मुसीबत
अब आँख से वो आठ पहर देख रहे हैं
ख़त ग़ैर का पढ़ते थे जो टोका तो वो बोले
अख़बार का परचा है ख़बर देख रहे हैं
पढ़ पढ़ के वो दम करते हैं कुछ हाथ पर अपने
हँस हँस के मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर देख रहे हैं
मैं ‘दाग़’ हूँ मरता हूँ इधर देखिए मुझ को
मुँह फेर के ये आप किधर देख रहे हैं
ऋतुराज वर्मा