सब बढ़ियाँ
ग़र मैं कह दूँ,”सब बढ़ियाँ”
तुम्हारे पूछने पे पहली दफ़ा
हरगिज़ ऐतबार न कर लेना
मेरे उन खोखले लफ़्ज़ों का।
फिर से पूछ लेना ज़रूर एक बार,
“सही में बढ़ियाँ है न?”
तब, मालूम होगा तुम्हें हाल-ए-दिल
थरथराती,बेचैन आवाज़ से।
कुछ भी बढ़ियाँ नहीं है,
बिना तुम्हारे!
-अटल©