सब बिक गए!
ज्ञान बिक गये,
ध्यान बिक गये।
कलम विकी,
सम्मान बिक गये।
छोटी-छोटी सुविधाओं पर,
बड़े-बड़े ईमान बिक गये।
सोच समझ कर मुँह से बोलो,
दीवारों के कान बिक गये।
उनसे पूछ जिंदगी क्या है,
जिनके सब अरमान बिक गये।
नग्न रह गई जीवित लाशें,
मुर्दों के परिधान बिक गये।
चोरों को मत दोष दीजिये,
घर के ही दरबान बिक गये।
रपशुओं की कीमत लगती है,
बिना मूल्य इंसान बिक गये।