सब तो उधार का
तो फिर मेरे पास क्या
सब तो है उधार का
इक रोटी खाई उधार की
ये कपड़े पहना उधार का
पैरों को ढकने जुते नहीं थे
जुते लिया उधार का
मुंह ढंकने रूमाल नहीं था
रुमाल लिए हूँ उधार का
फोन चलाने फोन नहीं था
फोन लिया हूँ उधार का
तो फिर मेरे पास क्या
सब तो है उधार का
किताब खरीदी उधार की
पेन खरीदा उधार का
सारी दुनिया से बदतर हूँ
मैं लड़का कामगार का
नींद लिया हूँ उधार की
सपना देखा हूँ उधार का
मेरी हर जरूरत उधार की
पैसे जेब में लाया उधार का
तो फिर मेरे पास क्या
सब तो है उधार का …….
कवि ~ जितेन्द्र कुमार सरकार