सब तुम्हारी राह में ….
चुन रहे थे पुष्प हम
बस सब तुम्हारी राह में,
किन्तु ये क्या?
कांटो से सब बिंध गये है
हाथ मेरे।
तुम मगर बस देखते हो
पुष्प की मालिन्यता,
रक्त इनमें है लगा।
क्यों नहीं तुम देखते ?
भावना इस कर्म के प्रति,
या रक्त रंजित हाथ मेरे।
शूल चुभने की ये पीड़ा
मुझे सहर्ष स्वीकार्य है
किन्तु मन को कचोटती है
उपेक्षा बस ये तुम्हारी ।
अब मेंरे कर्तव्य सब
याकि मेरे अधिकार भी,
एक अरसे से तुम्हारी
सब ही ड्योढी पर पड़े है ।
आवाज दी कई बार तुमको
तुमने फिरकर भी न देखा ।
किन्तु हम उसी ठौर पर
प्रेम का उपहार ले,
निस्तब्ध सा अब भी खड़े है।