सब ठीक है ।
मेरे पास भी है एक सुबह और एक शाम
इस उम्मीद के नाम
की हाँ सब ठीक है…
ये अंधेरे वो उजाले
वो बेवजह गमों के साए और हाथ में एक चिराग
की हाँ सब ठीक है…
चेहरे पर अश्रुधरा
नयनों तले अंधियारा
और फिर एक किरण
की हाँ सब ठीक है…
उथल – पुथल सी ज़िंदगी में समेटना एक दरिया विश्वास का और कहना
की हाँ सब ठीक है…
कभी मुस्कुराहट कभी उदासी
अरे ये तो वो भाव हैं जिनको बना कर तुम दासी कहो खुद से
की हाँ सब ठीक है…
पढ़ाते पढ़ाते दिल को ये पाठ
शीर्षक – की हाँ सब ठीक है
जीवन की किताब ने आखिर हासिल कर ही लिया ये ख़िताब
अरे अब तो मान लीजिए जनाब !
की हाँ सब ठीक है |