“सब टेबुल लैंप है”
“सब टेबुल लैंप है”
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बल्ब से, जितना रोशनी फैलता है;
कोई, अपना प्रकाश फैलाता कहां;
परोपकारी जीवन, अपनाता कहां;
अब तो घर घर, ‘सब टेबुल लैंप है’
अपने परिवार से, अब पटता नहीं;
समाज से भला , किसको मतलब;
सबका मन , स्वार्थ से है लबालब;
हर एक घर ही, जीवन कैंप है अब;
ट्यूब नही, ‘सब टेबुल लैंप है’ अब;
यह फोकस करता, सिर्फ लक्ष्य पे;
बाहर कोई,प्रकाश बिखराता कहां;
बिना मकसद,ये कहीं जलता कहां;
लालटेन भी नही,’सब टेबुल लैंप है’
अब तो नारा है , हम दो; हमारे दो;
मजबूरी है,हम तो भूल गए सबको;
हमको भी, तुम चैन से तो जीने दो;
जो रिश्ता जोड़े,नहीं ऐसा सीमेंट है;
खुद ही जलकर, जो रोशनी बिखेरे;
वो मोमबत्ती कहां,सब टेबुल लैंप है;
सारी खुशियां बसती , अब पर्स में;
जिंदगी सिमटी , मोबाइल स्पर्श में;
सब दुखी होते , दूसरों के ही हर्ष में;
सुस्त पड़ गए , अब सारे रिश्ते नाते;
रिश्तों में अब नहीं,कोई भी करेंट है;
अब जो रिश्ता है, ‘सब टेबुल लैंप है’।
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स्वरचित सह मौलिक;
…..✍️ पंकज ‘कर्ण’
…………कटिहार।।