#कुंडलिया//दूर जाति धर्म रखना
#कुंडलिया
रचना रब की श्रेष्ठ है , मनुज धरा पर एक।
स्वार्थ लिए नीचा हुआ , भूल परमार्थ नेक।।
भूल परमार्थ नेक , दंभ में जीवन जीता।
परहित समझे नाज़ , वही सच समझे गीता।
सुन प्रीतम की बात , दूर जाति धर्म रखना।
शक्ति शील सौंदर्य , युक्त अतिउत्तम रचना।
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
#आर.एस.’प्रीतम’