सब जाग रहे प्रतिपल क्षण क्षण
सब जाग रहे प्रतिपल क्षण क्षण
केवल मै ही हूं सोई सी…
जाने किस भय किस शंका में..
बेसुध हारी सी खोई सी..
जीवन सुलझाने की जिद थी..
ऐसी सुलझी की उलझ गई..
अपने ही मन की “ज्वाला” में..
कूदी ऐसे की झुलस गई..
अब टूटे दर्पण को तकती..
में व्याकुलता में सोई सी..
जाने किस भय ;किस शंका में..
बेसुध हारी सी खोई सी…
सब जाग रहे… प्रति पल क्षण क्षण
केवल मै ही हूं सोई सी..
**कु. प्रिया मैथिल