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16 Jun 2022 · 1 min read

सब खड़े सुब्ह ओ शाम हम तो नहीं

ग़ज़ल
सब खड़े सुब्ह-ओ-शाम हम तो नहीं
उनके दर के ग़ुलाम हम तो नहीं

आप क्यों ला-क़लाम हैं हमसे
आपसे हम-क़लाम हम तो नहीं

मुँह में हम भी ज़बान रखते हैं
आपसे बे-लगाम हम तो नहीं

मयकदे में ज़रूर बैठे हैं
पर तलबगार-ए-जाम हम तो नहीं

दाद-ओ-तहसीन मिल सके हमको
ऐसे भी ख़ुश-क़लाम हम तो नहीं

ओक से मय पियें तेरी साक़ी
इतने भी तिश्ना-काम हम तो नहीं

क़ाबिले-एहतराम आप ही है
क़ाबिले-एहतराम हम तो नहीं

हम कोई ख़ास तो नहीं हैं ‘अनीस’
लेकिन इतने भी आम हम तो नहीं
– अनीस शाह ‘अनीस’

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 263 Views
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