सब के सब खुदा थे
कहाँ इंसाँ थे सब के सब खुदा थे
न सूरत थी न कोई चेहरा थे
चले थे भीड़ बनकर रास्तों पर
सहारा बनते क्या वो खुद हवा थे
मिला क्या साथ रहकर उल्फतों में
दगा देकर गए जो खुद फ़िदा थे
मिटाना चाहते हैं अब उसी को
कभी जो वो उसी का हौसला थे
सियासत है अनोखी सी पहेली
हुआ ये जुल्म उस पर जो सदा थे
वफ़ा की बात करते हैं वो ‘सागर’
हमेशा से ही खुद जो बेवफ़ा थे