— सब के बहते हैं आँसू —
लग जाए दिल पर गर कोई बात
नही गुजर सकती किसी की भी रात
बेवजह बदनाम हो जाता है दिल
अश्क बहा बहा कर गुजरती है रात
सच्चे दिल को जब लगती है ठेस
नही रह पाता काबू वो शक्श
कहने से भी डरता है अल्फाजों से
कहीं किसी दुसरे को न लग जाए ठेस
दुनिया का क्या है बहकाने लगी है
अपनी बात बस मनवाने लगी है
कोई लेकर बैठा होगा न जाने कितने अरमान
पर सामने वाले को कहाँ समझ आने लगी है
कहीं समझना , और कहीं समझौता करना
बस अपने दिल से मिलकर बातें करना
क्या कहें किसी से दिल की बातों को
चुपचाप रहना , बस आहें ही भरना
अजीत कुमार तलवार
मेरठ