सब कुछ पाना हमें यहाँ है
जीवन की राहें अनजानी,
मंजिल का भी पता कहाँ है.
चले जा रहे अपनी धुन में,
सब कुछ पाना हमें यहाँ है.
कहीं बबूलों के जंगल हैं,
कहीं महकती है अमराई.
फूल शूल के साथ विहँसकर,
फुलवारी में ले अँगड़ाई.
स्वप्न आस का मन आँगन में,
रोज टहलता यहाँ-वहाँ है.
आकर बाढ़ कहीं नफरत की,
तहस-नहस जीवन कर देती.
वहीं प्रेम की रिमझिम बारिश,
हर खाली आँचल भर देती.
पुष्प पल्लवित हैं खुशियों के,
त्याग और विश्वास जहाँ है.
कभी करें सन्नाटे विचलित,
कभी शोरगुल में दम घुटता.
कभी यहाँ पर मान किसी का,
दो रोटी की खातिर लुटता.
सुख का भी सामान बहुत है,
लेकिन बिखरा जहाँ-तहाँ है
बिस्तर पर होते हैं, लेकिन,
कभी चैन से कब हम सोते.
रात और दिन खटते रहते,
फिर भी काम न पूरे होते.
जाना है उस पार जगत के,
पर मन करता कभी न हाँ है.