सब्र के घूँट…
बचा- बचा के रोज़, मैंने जिंदगी को जिया है
हौसलों के साथ सब्र के घूँट को पिया है…
तुम बात करते हो, कामयाबी देखने की
मेरा साथ तो बस, ठोकरों ने दिया है…
मेरी चादर में सितारे, न लगे हो तो क्या
मैंने एक-एक दिन को, रफ़्फूकर सिया है…
तकदीर में तो, कुछ ना लेकर आए थे मगर
अपने हिस्से का, आसमान भी तुझे दिया है…
लोग़ करते रहे, मेरे कर्मों का हिसाब मगर
हमनें तो हर फ़र्ज़, धर्म समझकर पूरा किया है…
हो जाओ खुश, सब कुछ छीन कर मेरा
मान लूँगी अपना हक उन्हें, खैरात में दिया है…
हक और इंसाफ की लड़ाई कब तक लड़ेंगे
ज़िन्दगी का फैसला, खुदा के सुपुर्द किया है…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’