सब्र की इंतेहा
हैवानियत की हदें पार कर चूका है यह इन्सा,
ऐ खुदा ! और कितनी है तुझमें सब्र की इन्तेहाँ।
मौत के साये में हुई हर जीस्त खौफज़दा,
उस पर सौदा कब्र का करते है यह हुकुमरां।
ईमान तो गुम हो गया गुनाहों के अंधेरों में,
चलन हुआ जबसे फरेब का ज़मीर हुआ पशेमाँ।
खून के रिश्ते या दिलों के रिश्ते सब एक है ,
खुदपरस्ती का सदका करता हर रिश्ता यहाँ।
हवाएं हैं ज़हरीली औ शोला बरसाए आसमाँ ,
दरिया-सागर का रंग है लहू से रंगा यहाँ-वहां।
अनु परेशां सी करती हैं इंतज़ार कयामत का,
नीद से जागो खुदा , और मिटा दो ये जहां।
anu