सबेरा
जब मन-मस्तिष्क,
सद की इक्छाओं से ओत-प्रोत हों,
भावनाएं, कामनाएं सब प्रभु को समर्पित हों
‘कर्म’ की निरन्तरता से
मन-मयूर झूम रहा हो
आगे, आगे और आगे
की भावना अन्तर में व्याप्त हो रही हो,
मेरे पथिक!
समझो वहीँ सबेरा है।
………
संसार की तथाकथित रीति-रिवाजों में,
जब मन बधा न हो,
नभ को छूने की ध्रुव इक्छा हो,
समस्त भौतिक कामनाएं/इक्छाएं
एक इंगित पर थम गईं हों,
न आश्रय की फिक्र हो न आश्रय देने की,
स्वतंत्रता के ऐसे बाग में
समझो सबेरा है।