सबूत-ए-मोहब्बत
तुम्हारी कब्र पर’भंडारी’ रोने नहीं आया
उसे मालूम था तुम हार नहीं सकते
हो रुख़सत हमसे कहीं सांसें गुजार नहीं सकते
तुम्हारी मौत का पैगाम झूठा सा लगने लगा
क़लम उठाई लिखने को
बस तू ही तू दिखने लगा
कोई सूखा पत्ता हवा में गिरके टूट गया
जैसे उसके साथ मोहब्बत का सबूत गया
हमारी आँखें तुम्हारी यादों में आंसू बहाती
मोहब्बत की कमबख्त दुनिया को पल पल दोहराती
लग रहा है पल छिन बदला नहीं कुछ भी
तुम्हारा दिल मेरी अंगुलियों में सांस लेता है
अधूरेपन का वो लम्हा तुम्हारे साथ बहता है
हमारी आवाज में तुम्हारा ज़िकर
तुम्हारे यारों को तुम्हारी फ़िकर
गवाही देता है तुम आज भी यहीं कहीं हो
यहीं कहीं हो , बस यहीं हो
कौन कहता है तू जुदा है हमसे
कभी ज़रूरत हो तो आकर देखना
तुम्हारे दोस्त तुम्हारा नाम अक्सर गुनगुनाते है
……….भंडारी लोकेश