सबसे बड़ा रुपइया भइया…
शव लादे कन्धों पर
पाँव लड़खड़ा रहे थे
नन्हीं मुन्नी हाथ पकड़
चल रही थी अपने पैरों पर
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मील दर मील चलता गया
करूणा का केन्द्र बनता गया
हर तरफ एक अजीब सा शोर
कोई वीडियो बनाता कोई फोटो लेता गया!
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ना दवा हो सकी ना श्मशान की तैयारी
ना कोई घोड़ा-गाड़ी हाथ तंग थे अपने
मन ने यही कहा भइया बाबू कोई नहीं
अगर है तो सबसे बड़ा रूपइया.!
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पहुँचा था जब चिकित्सालय
सीधे कहा पहले रुपये जमा करो
फिर मरीज भर्ती किया जायेगा
बिना रुपये के कुछ नहीं हो सकता!
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आँखों में आँसू और हाथों में मुन्नी का हाथ था
मन असहाय सा निराला को याद कर रहा था
बाबू-भइया किया फिर भी किसी ने ना सुना
प्राणप्रिया को बस निहारे जा रहा था!
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अचानक एक चीथड़ों से लदा पुरुष दिखा
देख मुझे कहने लगा क्यों रोते हो भइया
कोई नहीं है दादा-भइया सबसे बड़ा रुपइया भइया!
देख मुझे सब दूर हुए मुझसे !
……
मैं गाता हूँ हर रोज गीत खुशी के
कोई नहीं अपना भइया
सबसे बड़ा रुपइया भइया!
तुम भी गाओ चलते जाओ….
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)