“सबको मैं अपनाता हूँ “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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लिखना भी नहीं आता है ,
ना गीत कोई गढ़ पाता हूँ !
जो मन हमें भा जाता है ,
उसको ही मैं अपनाता हूँ !!
राहों में कितने लोग मिले ,
कुछ साथ रहे कोई चले गए !
हर लम्हों को आज भी मैं ,
यादों का महल बनाता हूँ !!
जो मन हमें भा जाता है ,
उसको ही मैं अपनाता हूँ !!
खुशियाँ मिलने पे नाच उठे ,
गम को भी अपनाया मैंने !
है नहीं शिकायत कभी मुझे ,
सबको ही मैं अपनाता हूँ !!
जो मन हमें भा जाता है ,
उसको ही मैं अपनाता हूँ !!
हर हाल में रहना सीख लिया ,
काटों के चुभन को जान लिया !
फूलों के कोमल स्पंदन से ही ,
दिल को मैं नित बहलाता हूँ !!
जो मन हमें भा जाता है ,
उसको ही मैं अपनाता हूँ !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
एस ० पी ० कॉलेज रोड
नाग पथ
शिव पहाड़
दुमका