सबके ही आशियानें रोशनी से।
सबके ही आशियानें रोशनी से झिलमिला रहे हैं।
मेरे घर को बद नसीबी के काले अंधेरे सता रहें हैं।।1।।
खुदाया ऐसी क्या खता हो गई ज़िंदगी में मुझसे।
हर घर में चश्मे चरागा है हमको अंधेरे डरा रहें हैं।।2।।
सबकी ही किस्मत में चिरागों की रोशनी आयी।
मेरी ही जिंदगी में जाने क्यों उजाले ना आ रहे है।।3।।
बच्चो को कैसे समझाऊं क्यूं नही लाया मैं खिलौने।
हालात भी जैसे मेरी गरीबी का मज़ाक उड़ा रहे हैं।।4।।
इक मेरी ही कश्ती फंसी है इस तूफाने समंदर में।
बाकी सब ही अपनी कश्तियां किनारे लगा रहे है।।5।।
जिनकी जिन्दगी को कभी कुर्बते खुशी ना मिली।
शायद वो सब मरकर तुर्बत में अब सुकूँ पा रहे है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ