सबके लिए ससुराल नहीं है ‘गेंदा फूल’
कवि मिथिलेश राय की कविता तो पढ़िये कि कैसे एक उम्र व पड़ाव आने के बाद स्त्रियाँ मरद बन जाती हैं ? सत्यश:, इस कविता ने अबतक बाँधे रखी, तो इसे आप भी पढ़ लीजिए ! अर्थात-
“एक उम्र के बाद स्त्रियाँ मरद हो जाती है
वे तनकर चलती हैं, तेज बोलती हैं
और जोर-जोर से हँसती हैं
उनकी आँखों में शर्म घट जाती हैं !”
22 अक्टूबर को ‘सास दिवस’ होती है शायद ! ….परंतु समस्त सासवाले व सासवालियों के लिए ससुराल गेंदा फूल नहीं है !
वाकई में, जो सच कहते हैं, लोग सबसे ज्यादा नफ़रत उसी से करते हैं ! ऐसा प्लेटो ने कहा है। वहीं फिर उच्च शिक्षित बेटी को उनकी योग्यता के अनुरूप वर ढूँढ़ कर भी नहीं मिलते ! मिलते भी तो उपहार के रूप में उच्च माँग वरवाले की तरफ से किये जाते ! जब यहाँ दहेजनिषेध की बात होती, तो कहते कि यह तो आप अपनी बेटी को ही उपहार दे रहे हो ! ज्यादा जोर देने पर कि उपहार भी जबरन ली जाय, तो यह दहेज ही कहलायेगा ! तब फिर रंगभेद शुरू… कि आपकी बेटी काली है, कुरूप है। उसने पीएचडी कर लिया तो क्या ?
भारत में उच्च शिक्षित महिलाओं का अगर सर्वे की जाय, तो 80% महिलाएं अविवाहित ही होंगी ! शादी की योग्यता में वर -वधू के बीच 19 -20 का अंतर चल सकता है, किन्तु 10 -20 का अंतर तो उन उच्च शिक्षित नारियों के लिए ताउम्र दब्बूपना स्थिति लिए होगी !