सबके राम !
राम से बड़ा राम का नाम , लेकिन उससे बड़ा राम का काम .
और राम का जो काम है उसी से बनेगा रामराज्य !
नानक ,कबीर ,संत रैदास ,रामकृष्ण परमहंस ,गाँधी ,विनोवा आदि सबके प्रिय थे राम . जन – जन के प्रिय हैं राम .
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अयोध्या में राम मन्दिर का निर्माण जितना जरूरी है ,उतना ही आवश्यक है कि हम राम के चरित्र में समाहित सर्व मंगलकारी चेतना को अपने चिन्तन – चरित्र में समाहित करें .प्रेम ,सेवा ,त्याग और पुरुषार्थ से सराबोर राम का चरित्र स्वयं में सनातन धर्म है और यही है हमारे राष्ट्र का DNA , तभी तो स्वामी विवेकानन्द ने कहा था -” यूरोप का आदर्श है राजनीति ,जबकि भारत का आदर्श है अध्यात्म .जब तक भारत यूरोप आयातित राजनीति में उलझा रहेगा , तब तक उत्थान संभव नहीं है .भारत की उन्नति अवश्य होगी पर वह उन्नति भौतिक शक्ति से नहीं आध्यात्मिक शक्ति से .
” सिया – राम मय सब जग जानी ” – हमें अध्यात्म की ओर उन्मुख होने का संदेश देता है और जैसा कि श्री अरविन्द ने कहा था संसार को आध्यात्मिकता का सनातन संदेश सुनाने हेतु ही भारत आजाद हुआ है .
दोस्तों ! हम सब चाहते हैं कि बच्चा – बच्चा राम बने और समाज में रामराज्य जैसा वातावरण दिखे ! लेकिन चाहने से क्या ? सवाल है कि इस दिशा में हम करते क्या हैं ? हमें नहीं भूलना चाहिए कि राम के चरित्र का निर्माण दशरथ की गोद ,कौशल्या की आंचल ,परिवार के परिवेश और गुरु बशिष्ट एवं विश्वामित्र के आश्रमों में हुआ था .
अगर हम चाहते हैं कि बच्चा – बच्चा राम बने तो हर पिता को दशरथ , हर माता को कौशल्या ,हर परिवार को प्रेमशाला और हर पाठशाला को गुरुकुल के आदर्शों से आप्लावित करना होगा .
अगर हम रामराज्य की कामना करते हैं तो हमें त्याग और पुरुषार्थ की गौरवशाली परम्परा को पुनः स्थापित करना होगा .रामराज्य ऐसे नही आया था .रामराज्य तो तब आया था जब जब राम बानरों से ,सबरी से ,आदिवासियों से ,सबसे जुड़े थे ,सबके बने थे .ड्राइंगरूमों में बैठकर चर्चा करने से या कथा – प्रवचन सुनकर रामराज्य कैसे आयगा भाई ? सोचिये !, चर्चा जारी है .
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