सबकुछ नम्बर वन तो जीरो नम्बर क्यों लें जनाब!
सुशील कुमार ‘नवीन’
राजा नम्बर वन, मंत्री-सभासद नम्बर वन। प्रजा नम्बर वन,प्रजातन्त्र नम्बर वन। प्रचार नम्बर वन, प्रचारक नम्बर वन। प्रोजेक्ट नम्बर वन, प्रोजेक्टर नम्बर वन। मोटिव नम्बर वन, मोटिवेटर नम्बर वन। ज्ञान नम्बर वन, ज्ञानी नम्बर वन। राग नम्बर वन, रागी नम्बर वन। व्यापार नम्बर वन, व्यापारी नम्बर वन। किसान नम्बर वन ,किसानी नम्बर वन। जब सब कुछ नम्बर वन हैं तो आंकलन और आंकलनकर्ता भी नम्बर वन ही होना चाहिए। सामयिक मुद्दा कृषि विधेयकों का है। ये किसान विरोधी हैं या नहीं इसकी सटीक विवेचना करने वाले दूर-दूर तक नहीं दिख रहे हैं। जो विशेषज्ञ सामने आ रहे हैं उनके अपने-अपने स्वार्थ हैं। सत्ता पक्ष के विशेषज्ञों को हर हाल में इसी बात पर अडिग रहना है कि ये किसानों के लिए सरकार का तोहफा है तो विपक्ष से जुड़ें विशेषज्ञों को तो इसमें मीनमेख निकालनी ही निकालनी है। ऐसे में किसान किसे सही मानें। पर जिस तरह बवाल हो रहा है उससे तो उन्हें पुराना सिस्टम ही उचित सा लगने लगा है। खैर छोड़िए इसे। ये लड़ाई अभी लम्बी चलनी है। आप तो बस एक कहानी सुनें और आनन्द लें।
विदेश यात्रा गए राजा साहब को वहां दो घोड़े पसन्द आ गए। राजा ने घोड़ों के मालिक से मोलभाव किया पर वह उन्हें बेचने को तैयार नहीं था। राजा साहब मुंहमांगे दाम पर भी लेने पर अड़े थे। घोड़ा मालिक का तर्क था कि ये आपके लायक नहीं हैं।ये सुंदर हैं, मनभावन हैं पर आरामपरस्त हैं। कल को इन्हें युद्ध आदि में भी प्रयोग करना चाहोगे तब काम नहीं आएंगे। दूसरे आपके यहां गर्मी बहुत है, ये ठंडे मौसम के आदी हैं। बीमार हो जाएंगे। जान का भी जोखिम अलग से रहेगा। इन्हें छोड़ आप आपके देश के अनुरूप घोड़े ले जाएं। हठ पर घोड़ा मालिक ने इस शर्त पर राजा को घोड़े दे दिए कि इन्हें धूप तक नहीं लगनी चाहिए । राजा विशेष व्यवस्था कर घोड़ों को अपने राज्य में ले आया। उनके लिए विशेष अस्तबल तैयार करवाया गया। देखभाल के लिए कर्मचारी नियुक्त कर दिए गए। विदेश से विशेष घोड़ों को लाने की खबर प्रजा तक भी जा पहुंची। हर कोई इन्हें देखना चाहता था पर राजा के अलावा अस्तबल में जाने की किसी को इजाजत तक नहीं थी। एक दिन राजसभा में मंत्री ने राजा से उन घोड़ों की खूबियों के बारे में पूछा तो राजा ने कहा-एक नम्बर के घोड़े हैं। उनका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। सुंदरता में, कदकाठी में, चाल में सब एक नम्बर है। मंत्री ने कहा-जी ऐसे है तो प्रजा को भी इन्हें एक बार देखने का मौका मिलना चाहिए। मौसम ठीक जान एक दिन राजा ने आमजन के लिए घोड़ों के दर्शन कराने का निर्णय लिया। मुनादी के बाद तय समय पर मंत्री, सभासद व आमजन राजमहल के बाहर खुले मैदान में जमा हो गए। दुदम्भी की ध्वनि के साथ घोषणा की गई कि सभी दिल थाम कर बैठें। सुंदरता में नम्बर एक, कदकाठी में नम्बर एक, चाल में नम्बर एक राजसी घोड़े जो कभी न देखे होंगे,न उनके बारे में सुना होगा। जल्द सामने आ रहे हैं। फूलों से सजे वाहन में दोनों घोड़ों को बाहर लाया गया। देखते ही घोड़े सबके मन को भा गए। बाहर की हवा लगते ही घोड़े जोर-जोर से हिनहिनाये। प्रजा ने मधुर आवाज पर तालियां बजाई। वो फिर हिनहिनाये। तालियां फिर बजने लगी। पर ये क्या, घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज रुकने का ही नाम नहीं ले रही थी। हिनहिनाने के साथ घोड़ों ने वाहन में ही उछलकूद शुरू कर दी। लात मार कर्मचारी भगा दिए। रस्सी से अपने आपको आजाद करवाकर अस्तबल की ओर दौड़ लगा दी। थोड़ी सी दूरी के बाद ही दोनों गिर पड़े और अचेत हो गए। पशुवैद्य ने जांच उन्हें शीघ्र अस्तबल में ले जाने की कही। वहां जाते ही घोड़ों ने आराम महसूस किया। घण्टे भर में वो सामान्य हो गए। राजा को आकर पशुवैद्य ने आकर जानकारी दी की अब वो सामान्य हैं। इसके बाद राजा ने उन घोड़ों को बाहर नहीं निकाला।
उधर, वो एक नम्बरी घोड़े प्रजा के लिए फिर चर्चा का विषय बन गए। एक बोला-भाई, राजा के घोड़े हैं तो एक नम्बर के। दूसरे ने भी हामी भरी।बोला-बिल्कुल, देखते ही मन भा गए। तीसरे का जवाब भी कुछ ऐसा ही था। चौथा चुपचाप उनकी बात सुन रहा था। सबने घोड़ों पर उसकी भी राय जानी। बोला- घोड़े एक नम्बर के हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। पर राजा के तो जीरो नम्बर हो गए। सब बोले- घोड़े एक नम्बर के तो राजा के जीरो नम्बर क्यों। राजा ही तो अपनी बुद्धिमानी से इन्हें छांटकर खरीदकर लाया है, ऐसे में राजा ने भी तो एक नम्बर का ही काम किया है। उसने कहा-जरूर, राजा एक नम्बर, सभा-सभासद सब एक नम्बर,काम भी एक नम्बर। राजा का सलेक्शन भी एक नम्बर का है। पर ऐसे घोड़ों का क्या फायदा। जिन्हें न राजा किसी को दिखा सकता है,न सवारी कर सकता है। न सेना में शामिल कर सकता है, न किसी को उपहार में दे सकता है। बोलो, हैं ना। ये जीरो नम्बर का काम।
उसकी बात सबको उचित सी लगी। बोले-तुम ही बताओ, राजा को क्या करना चाहिए। बोला-जब यहां के वातावरण के अनुसार ये हैं ही नहीं तो राजा क्यों इन्हें मारने पर तुला है। जहां से इन्हें लाया गया, वहीं इन्हें भिजवा दें। जो उपयोगी नहीं, उसे लौटाना ही ठीक। बात राजा तक भी पहुंच गई। उसने सोचा जब मेरे पास पहले से सबकुछ एक नम्बर है तो इन घोड़ों के चक्कर में अपने नम्बर क्यूं कम करवाऊं। राजा ने घोड़े ठंडे प्रदेश में वापस लौटा दिए। विदेशी नम्बर वन घोड़ों के चक्कर में राजा ने अपने नम्बर जीरो करवा लिए थे। अब राजा का टारगेट प्रजा में अपने जीरो नम्बर को फिर से एक नम्बर में बदलने का हो गया। आगे क्या हुआ, ये फिर कभी बताऊंगा। आज के लिए इतना ही काफी….।
(नोट-कहानी मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे अपने दिमाग से किसी के साथ जोड़ ज्यादा स्वाद लेने का काम कदापि न करें। ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।)
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’ , हिसार
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।
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