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4 Aug 2021 · 1 min read

सबकी सीमा खैर मना….

इधर-उधर मत ताका कर
मन के भीतर झाँका कर

काँटों भरी राह पर भी तू
फूल खुशी के टाँका कर

मोती भी चुग लाया कर
यूँ ही धूल न फाँका कर

कुछ तो काम की बातें कर
खाली गप्प न हाँका कर

सबकी अपनी कीमत है
कम न किसी को आँका कर

हुनर उजागर कर सबके, पर
दोष न अपने ढाँका कर

सबकी ‘सीमा’ खैर मना
बाल न किसी का बाँका कर

—© डॉ. सीमा अग्रवाल —
“संरचना” से

5 Likes · 2 Comments · 312 Views
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