सबकी खैर हो
रब ख़ैर करे
रब ख़ैर करे
सब ख़ैर करे
सब ख़ैर करे…
(१)
चार दिन की
जिंदगानी में
क्यों कोई किसी
से वैर करे…
(२)
कण-कण में वही
है बसा हुआ
क्यों कोई हरम और
दैर करे…
(३)
जब सबका मालिक
एक ही है
क्यों कोई सगा और
गैर करे…
(४)
दिल में स्वर्ग की
चाहत लेकर
क्यों कोई नर्क में
पैर करे…
(५)
इस रंग-बिरंगी
दुनिया का
क्यों कोई न नींद में
सैर करे…
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Shekhar Chandra Mitra
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