सबकी अपनी-अपनी सोच है….
सबकी अपनी-अपनी सोच है….
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जब किसी भी समारोह में जाता हूॅं ,
सबसे मिलकर बातें जब करता हूॅं ,
किसी मुद्दे पर राय उनकी लेता हूॅं ,
तब बड़े ही आश्चर्य में पड़ जाता हूॅं ,
सबकी राय अलग – अलग होती है ,
किसी अंजाम तक नहीं पहुॅंच पाता हूॅं ,
क्योंकि सबकी अपनी-अपनी सोच है !!
किया भी नहीं जा सकता कुछ यहाॅं ,
गहराई के बिंदु तक नहीं जा सकता ,
क्योंकि जितनी ही गहराई में जाता हूॅं ,
उतना ही ज़्यादा उलझकर रह जाता हूॅं ,
हर विचारधारा के लोग एकत्रित होते हैं ,
अपने-अपने तरीके की दलीलें रखते हैं ,
सुलझाने की बजाय बातों को उलझाते हैं ,
क्योंकि सबकी ही अपनी-अपनी सोच है !!
इतने विशाल से देश में विभिन्न धाराएं हैं ,
भिन्न – भिन्न पृष्ठभूमि के लोग बसते यहाॅं ,
शिक्षा – दीक्षा के स्तर में बहुत अंतर होता ,
हैसियत के मुताबिक जिसे ग्रहण कर पाते ,
किसी की शिक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में ही होती ,
कोई शहरों में रहकर पठन-पाठन कर पाते ,
कोई विदेशों से कुछ और अर्जित कर लाते ,
और फिर एक ही समाज के अंग बन जाते !
एक समाज भिन्न मतों का समागम होता….
कोई आस्तिकता में विश्वास करता रहता….
तो कोई नास्तिकता वादी को बढ़ावा देता !
कोई रात में वक्त पर सोने की मंत्रणा देता….
तो कोई दिवा-स्वप्न को ही उचित ठहरा देता !
कोई देशी सभ्यता-संस्कृति का वाहक होता….
तो कोई पाश्चात्य संस्कृति की ही चाहत रखता !
कोई वेद-पुराण में निहित तत्वों को नहीं मानता ,
वो सदा आधुनिक तौर-तरीकों का कायल होता !
ऐसे में कौन किस-किस काबिल को समझाए….
वो बातों को सुलझाने की बजाय उलझा ही देता !
क्योंकि हर बात में सबकी अपनी-अपनी सोच है !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 10 नवंबर, 2021.
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