सबका भला कहां करती हैं ये बारिशें
सबका भला कहां करती हैं ये बारिशें
कइयों के छतों को यू ही रुला देती हैं
खाली हाथ लौटने तक बोझल कंधों के
थपकियां भूखी उम्मीदों को सुला देती हैं
दौर ये है की हररोज याद दिलाना पड़ता है
मुस्कुराहटें हररोज हमको भुला देती हैं
—– काव्यश😎