****सफेद जोड़ा****
आज मन क्यूं इतना घबराया है ।
ईश्वर की इस धरा पर यह कैसा मंज़र छाया है ।
सफेद जोड़े में सिमटी-सी बैठी हूँ ।
मन में रह-रहकर सिर्फ माँ-बाप का ही ख्याल सता रहा है ।
माँ जब कोई पूछेगा तुझसे तब कैसे बताएगी ।
क्या तेरी बेटी जीवन भर मनहूस कहलाएगी ?
कोई कहेगा तुझसे यह तो तू मन को कैसे समझाएगी ।
समाज का मुहँ तू कैसे बंद कर पाएगी ।
मनहूस कहेगी दुनिया तेरे ही अंश को तू कैसे सहन कर पाएगी । क्या तू सबको जवाब देने की हिम्पामत जुटा पाएगी ।
माता पापा को रोने मत देना ।समझाना उनको यह तो सृष्टि का नियम है,नसीब का खेल है ।
किस्मत सबकी ऊपर ही लिखी जाती है ।
यह तो रंगमंच है कठपुतलियाँ ही नजर आती हैं ।
माँ !क्या भैया की कलाई सूनी ही रह जाएगी ?
क्या उसके लिए कभी अब राखी नहीं आएगी ?
क्या मेरी किस्मत कभी न चमक पाएगी ?
क्या अब ये जिंदगी तानों में ही कट जाएगी ?
इसलिए, क्योंकि मैं एक लड़की हूँ ।
माँ क्या लड़की होना इतना बड़ा पाप है ?
विधवा होने के बाद सफेद जोड़ा ही उसका संसार हैं ।
कैसे मैं जुटाऊँ साहस बाहर निकलने का ?
अपना जीवन फिर से शुरू करने का ।
तेरा ख्याल सताता है ।
पापा का चेहरा सामने आ जाता है ।
कैसे सहोगी दुनिया के तानों को तुम ?
कैसे बंद करोगी उनके गालियों भरे मुँह को तुम ?
माँ नहीं है क्या खुशी पाने का अधिकार मुझे फिर से ।
क्योंकि मैं हूँ एक लड़की,दुनिया की नजर में एक अबला लड़की ।
मां क्या तू शर्मिंदा महसूस करेगी स्वयं को,
जब करेगा कोई बाहर का मेरी बुराई तुझसे ।
क्या तू सुन पाएगी ?
क्या तू उसको जवाब दे पाएगी ?
क्या तू मुझ पर फिर से गर्व कर पाएगी ।
माँ मुझे सफेद जोड़े में देखकर क्या तू खुश रह पाएगी ?
माँ सब कुछ कहना,सब कुछ सुनना पर यह कभी न कहना–‘बिटिया तू जीवन में कभी न चाहेगी’।
माँ नहीं है क्या मुझे अधिकार जीवन में रंग भरने का फिर से ? क्या चार दीवारी ही है मेरी सीमा रेखा के दायरे में अब ।
माँ यह कैसा संसार है बेटी के लिए कुछ और बेटों के लिए कुछ और ।
क्यों अभी भी यहां भेदभाव है ?क्या बेटों से ही संसार है ?
माँ इस नियम को बदलना होगा ।
बेटियाँ नहीं है किसी से कम यही ज़हन में भरना होगा ।
बदलाव लाने के लिए एक को तो पहल करनी ही होगी,उसकी शुरूआत आज ही अभी से करनी होगी ।
उतार कर यह सफेद कफन अंग से इंद्रधनुषी रंगों के साथ जीवन फिर से शुरूआत फिर से करनी होगी ।
पढ़ूँगी,लिखूँगी आगे और अब मैं । नहीं खत्म होने दूँगी जीवन को यूँ ही बेमोल अब मैं ।
नहीं तुम्हें मैं दुनिया के ताने सहने दूँगी अब मैं ।
भाई की कलाई कभी न सुनी रहने दूँगी अब मैं ।
पापा की जीवन का सहारा बनूँगी ।
समाज की हर रूढ़िवादिता का सामना करुँगी ।
घर बाहर दोनों संभालूँगी अब मैं ।परिवार का बेटा अब मैं बनूँगी ।
‘अगले जन्म मुझे बिटिया न दीजो’ ऐसा कहने वालों के मुँह बंद मैं करूँगी ।
वादा है मेरा यह तेरे से आज– कहते हैं जो बिटिया के लिए यह बात ।
ऐसा नाम करूँगी यह ठाना है ।
ऐसा कहने वालों के मुँह से यही यही कहलवाना है कि
है ईश्वर! दीजो अगर हमें तो बेटे से पहले बिटिया ही दीजो ।
क्योंकि बेटी ईश्वर का संपूर्ण खजाना है ?