सफेद चादर
आजकल. . . .
मैं एक चादर
ओढे़ रखता हूँ
जो सफेद है
उज्ज्वल है, सरल भी
जो मेरे लिए
कवच सरीखी है
सभा हो, सड़क हो
घर हो, बाहर हो
सदा रहती है रत
मेरी रक्षा में
छुपाए रखती है
हमेशा मुझे
अपने धवल
दामन में
बन जाती है ढाल
जब कोई मुझ पर
तीक्ष्ण बाण छोड़ता है
बन जाती है आवरण
जब कोई मुझे
छीनता है मुझसे
कोई भी हो मौसम
वो मेरी सदा
सहाई रहती है
करनी हो कभी जो
गुप्त मंत्रणाएँ
साथ इसके
आसानी से कर लेता हूँ
वो कभी लिए मेरे
अवरोधक नहीं बनती
वो कभी मेरी
आजादी का
हनन नहीं करती
हाँ! उसके साये में
मैं महफूज रहता हूँ
और जिंदगी के
फलसफे को
साथ रखता हूँ
अब वो मेरी
अभिन्न बन गई है
क्योंकि. . . . .
एक यथार्थ है
जो मैं जानता हूँ
शायद तुम भी. . . .
ये श्वेत चादर
जो अब तक
मेरे साथ है
रहेगी साथ
मेरे मरने के बाद भी. . .
सोनू हंस