सफाई क्यों दूँ…
जो समझ मुझे सकता नहीं, उसे सफाई क्यों दूँ
जिसका लौटना नामुमकिन है, उसकी दुहाई क्यों दूँ…
जर्रे – जर्रे में कल के, तूफाँ का असर है
बनकर टूटन अब मैं उसे, दिखाई क्यों दूँ…
हर बार जो हो जाता है, बेयक़ीन मेरे सामने
बेपीर को आह बनके, अब सुनाई क्यों दूँ…
तेरे सपनों के शीशे, मेरी आँखों में कैद हैं
बिखर जाएंगे जानकर, उनको रिहाई क्यों दूँ…
कभी आँसू, कभी दर्द, कभी बेरुखी ‘अर्पिता’
तुझसे जो पाया, वो सदियों की कमाई क्यों दूँ…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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