सफ़र में रहता हूं
किसी के दिल में बसा हूं न घर में रहता हूं
मैं सुब्ह-ओ-शाम मुसलसल सफ़र में रहता हूं
कहीं पनाह मिले तो मैं जा के छुप जाऊं
मुझे है फ़िक्र मैं सबकी नज़र में रहता हूं
तमाम ठौर ठिकाने मेरे हैं दुनिया में
कभी कभी मैं नदी के भंवर में रहता हूं
करो न बात कोई मुझसे होश की लोगों
नशे के बाद मैं इसके असर में रहता हूं
मुझे पसन्द हैं गुमनामियां , मगर यूं ही
तेरी ख़ुशी के लिए मैं ख़बर में रहता हूं
… शिवकुमार बिलगरामी