सफ़र में आशियाना चाहता है
सफ़र में आशियाना चाहता है
ये कया ये दिल दीवाना चाहता है
मिटा कर अपनी हस्ती अपने हाथों
वजूद अपना जताना चाहता है
ग़लतियाँ लिख के पक्के अक्षरों में
आँसुओं से मिटाना चाहता है
एक अपने ही मुझसे ख़ुश नहीं हैं
वरना सारा ज़माना चाहता है
जो भी आता है नयी ठेस लाता
फिर भी दिल मुस्कुराना चाहता है
एक मुट्ठी सुकून ज़िंदगी से
दिल है कि छीन लाना चाहता है
जहाँ कोई न पूछे नाम पता
मुसाफ़िर वो ठिकाना चाहता है
जाने कितने सवाल पूछता है
ख़ुद को ही बरगलाना चाहता है
आख़िरी साँस उसकी गोद में हो
मौत भी सूफ़ियाना चाहता है
अपनी तक़दीर अपने आप लिखकर
मुक़द्दर आज़माना चाहता है
जो ठुकरा कर मुझे पछता रहे है
उन्हें बिलकुल भुलाना चाहता है
कोई स्कूल की घंटी बजा दो
ये बच्चा छुट्टी पाना चाहता है
कंचन