सफलता की सीढ़ी
चारो तरफ माहौल ग़मगीन था। एक तरफ सफ़ेद कपडे में लिपटा शव रखा था,सभी की आँखों से आंसू बह रहे थे ।यह मात्र 18 बरस का लड़का रमेश था।
अपने माँ- बाप का इकलौता सहारा था,अभी दो साल पहले उसने शहर के एक कॉलेज में दाखिला लिया था।गाँव के स्कूल से अव्वल दर्जे से पास होकर आया था,कॉलेज में बड़े बड़े नामी घरानों के बच्चे पढ़ते थे उनके समक्ष रमेश का रहन- सहन बहुत साधरण था।
सभी उसका मजाक उड़ाते ताने मारते परंतु वह किसी की बात पर ध्यान नही देता,कॉलेज के पहले साल में ही वह प्रथम आया अब धीरे-धीरे वह अध्यापकों का भी प्रिय बन गया। उसकी दोस्ती रीमा नाम की एक लड़की से हो गई समय बीतते-2 दोस्ती प्यार में कब तब्दील हो गयी पता ही नही चला,अब उसका सारा ध्यान रीमा की तरफ रहने लगा ।रमेश पूरी शिद्दत से उसे प्रेम करता था,यह बात रमेश के घरवालों को पता चली तो उन्होंने दूसरी जाति की लड़की से इस रिश्ते के लिए इंकार कर दिया ।रीमा की खातिर रमेश ने अपने घर वालो छोड़ दिया,कभी रीमा कक्षा में अंतिम स्थान पर आती थी अब वही रीमा प्रथम आने लगी क्योकि रमेश उसकी परीक्षा की कॉपिया तक खुद लिख देता था ,परीक्षा में रमेश के नम्बर कम आने लगे समय बीतता गया और कॉलेज का अंतिम पड़ाव आ गया रमेश ने रीमा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो रीमा ने बड़े बचकाने स्वर में कह दिया की “मेरी शादी तो मेरे प्रेमी के साथ दो दिन बाद होने वाली हैं तुम तो मेरी सफलता की मात्र एक सीढ़ी थे”” इतना सुनकर रमेश को बहुत गहरा हृदयघात लगा की वह फिर कभी नही उठ सका।