“सफलता की बहार”
डिजिटल इंडिया के इस युग में न जाने कहां गुम हो गईं “कहानियां दादी-नानी की”… कहानी कहना-सुनना हमारी परंपरा का एक अंग रहा है । परिवार में दादी-नानी से कहानी सुनते-सुनते बच्चे न जाने कब उनसे अटूट स्नेह की डोर से बंध जाते!शिक्षक ने इतना कहा ही था कि विकास बोला नानी आज भी बोली! ज्ञान, संस्कृति, दर्शन, इतिहास और भाषा को सीखने के आनंद के साथ बच्चों को आभासी दुनिया में कहानियां ही घर और विद्यालय से जोड़ने का प्रयास करती हैं ।
शिक्षा-जगत में जरूरत है सहानुभूति-मित्ररूपी ताज़ी बयार
इन्हीं प्रयासों में ही छिपी उड़ान-भरती सफलता की बहार