सफलता की कुंजी
सफलता की कुंजी (लघु कहानी)
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रामू एक अनाथ बालक था,जिसके माता पिता बचपन में ही चल बसे थे और वह अपनी बुआ जी के पास रह रहा था।उसकी बुआ उसे बहुत प्यार करती थी,लेकिन वो अपने शराबी फूफा जी को एक ऑंख भी नही भाता था,जिनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नही थी।घर की आजीविका भी उसकी बुआ के सिलाई के पैसे से चलती थी।उसकी बुआ के एक ही लड़की थी सुषमा जो कि उसकी हमउम्र थी और दोनों गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे रामू विद्यालय का होनहार विद्यार्थी था और वह खेल व पढ़ाई दोनों में अव्वल था।
वह अपने विद्यालय के अंग्रेजी के अध्यापक श्री रामपाल जी से काफी प्रभावित था और वह भी विकट परिस्थितियों में आर्थिक सहायता करता था और भविष्य में कुछ बनने के लिए मार्गदर्शन भी करता था।होनहार होने के कारण उसका वजीफा भी लग गया था।इस प्रकार वह आगे बढ़ते हुए जैसे तैसे बारहवीं की परीक्षा मेरिट के साथ उतीर्ण कर ली।जिला स्तर पर प्रथम रहने पर जिला उपायुक्त द्वारा उसकी विष्वविद्यालय के स्तर की पढ़ाई के खर्च की व्यवस्था सरकारी खजाने से कर दी।जिला उपायुक्त श्री सुजान सिंह से रामु इतना प्रभावित हुआ कि उसने ठान लिया कि वह कठिन परिश्रम करके इसी उच्च पद पर आसीन होगा।दिन बीतते गए और उसमें स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली और उसने गांव में ही रहकर उसने upsc की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।तैयारी के साथ साथ उसे दिहाड़ी पर भी जाना पड़ता था और आने फूफा जी की डांट फटकार भी सुननी पड़ती थी।
और कुछ दिनों बाद upsc परीक्षा का परिणाम आ गया,जिसे देखकर उसकी आँखों मे खुशी के आँसू आ गए और वह फुला नही समा रहा था,क्योंकि उसने परीक्षा में तीसरा स्थान प्राप्त किया था ।उसका देखा हुआ अधूरा सा स्वप्न पूरा हो गया था और वह उसी गांव के जिले का जिला उपायुक्त बन कर आ गया था उसकी बुआ जी की मेहनत भी रंग लाई थी और शराबी फूफा जी को करारा तमाचा लगा था।इस प्रकार रामू की जिला उपायुक्त बनने की सफलता की कुंजी थी उसकी कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय, जिसके परों के सहारे उसने जीवन मे सफलता की उड़ान भरी थी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
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