सफलता का राज
विजय होस्टल में रहता था उसकी 12 वीं की परीक्षा जैसे जैसे पास आती जा रहीं थी उसकी घबराहट और परेशानी बढ़ती जा रही थी ।
वह मेहनत तो खूब करता लेकिन सफलता कौसो दूर रहती ।
उसकी कक्षा के बाकी लडके उसका मजाक भी उड़ाते और कहते ” सौ दिन चले अढ़ाई कोस ”
विजय का एक ही सच्चा दोस्त दिनेश था जो विजय को हिम्मत देता था । दिनेश ने तय किया :
” विजय इस बार अच्छे नम्बरों से पास होगा ।”
वह विजय के घर पढने जाने लगा और बातों से उसमें आत्मविश्वास का मंत्र फूंकने लगा । दिनेश कहता :
“विजय तुम पढ़ाई में बहुत होशियार हो , तुम्हारी स्मरणशक्ति बहुत अच्छी है वह तुम्हे जरूरत है तो अपने आप को मज़बूत बनाने की मन में विश्वास जगाने की ।”
इसके बाद दोनों पढाई करते और एक दूसरे की समस्याओ को हल करते ।”
दिनेश का मंत्र काम आया और विजय ने पूरे आत्मविश्वास के साथ परीक्षा दी । दिनश और वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुऐ ।
विजय ने दिनेश को गले लगा लिया और बोला :
” अच्छे और सच्चे दोस्त बहुत कम होते है तुम्हारा मंत्र में जिन्दगी के हर कदम में याद रखूगा, आज मेरे माता पिता बहुत खुश होगे दोस्त मैं आज ही उन्हें बताऊंगा मेरी सफलता का राज मेरा दोस्त दिनेश है , जिसने सफल होने का मूल मंत्र मुझे दिया है । ”
दिनेश ने सहज हक कहा :
” नहीं विजय यह तुम्हारी मेहनत , लगन और आत्मविश्वास का परिणाम है मैने तो सिर्फ तुम्हें सफलता कैसे पाए इसका मंत्र दिया है ।”
दोनों खुशी खुशी भगवान का आशीर्वाद लेने मंदिर चल दिए।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल