सफर
उम्र के पैंतरे
और वक्त की आहट!
सोंचता हूँ, तो
मन उदास हो जाता है।
इस गलियारे में
अब गज़ब का सन्नाटा है!
पसरती सांझ का शोर भी,
मद्धम हुआ जाता है।
पल पल टुटने की कशमसाहट
सलीब पर लिखे
अधूरे छंद की तरह!
दिल की धड़कनों को
और तेज किए जाता है।
वक्त, लगता है जैसे
अनंत ख्वाहिशों का जनाजा बन गया है!
शरीर की गठरी में
यह दिल जैसे डूबा जाता है।
कोई नहीं आता यहां,
अब तो मंजिलें भी सूनी पड़ी हैं!
जैसे इस रीते दिल में, वह
हजारों सूईयां चुभोए जाता है।
गज़ब का मंजर है,
उदास आंखों में रीसता पानी है!
संजोए सपनों की ख्वाहिश में
यह उम्र चटकता चला जाता है।
अनिल कुमार श्रीवास्तव
12/01/2020