सफर
जिंदगी की ये सफर ,
कट रहे थे यू डगर।
रेलम पेल थी उस रेल में,
बढ़ते जा रहे थे सफर।
अनजान से उस राह में,
सिर लटकाए बैठा था।
सिख बाबा ने मुझको,
ज्ञान की बातें बता रहा था।
कोई धीमी चल रहे थे,
कोई तेज चल रहा था।
मंजिल पाने के लिए,
होड़ से आगे बढ़ रहा था।
जिंदगी एक सफर है,
हम सभी मुसाफिर है।
हँसते हुए बिताना है,
कदम बढ़ाते जाना हैं।
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रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822