सफर दर-ए-यार का,दुश्वार था बहुत।
सफर दर-ए-यार का,दुश्वार था बहुत।
फिर भी मगर हमे, इंतजार था बहुत।।
हालांकि ये शहर, अजनबी था यूं तो।
तेरी गली से हमे , सरोकार था बहुत।।
बस अंधेरे ही लिखे थे मुकद्दर मे मेरे।
चिराग उजाले का पैरोकार था बहुत।।
हम ही ना सुन सके,यूं सदाएं उसकी।
आवाज मे उसकी, इसरार था बहुत।।
लबों की प्यास भी, बुझाते हम कैसे।
कहने को,प्यासा आबशार था बहुत।।
अयादतमंद से मुझे गिला नही कोई।
जब गमजदा ही,गमख्वार था बहुत।।
इत्तेफाकन हम उसको पढ़ ना सके।
नजरों मे उसकी , इजहार था बहुत।।
आज फिर किसी की याद आयी है।
ये दिल मेरा आज बेकरार था बहुत।।