सफर जिन्दगी का
दिनांक 5/7/19
गर होतीं तुम हमसफर
बुनते ताने-बाने जिंदगी के
बांटते दुख-दर्द आपस में
सफर आसान होता
गुजर गये किस तरह दिन
चूल्हे चौके में
मगन हो गये सब
अपने – अपनों में
अकेले रह गये हम
गर तुम होते / होती तो
सफर आसान होता
कैसी है ये जिन्दगी
कैसा है ये सफर
राह में मिलते बिछडते
है लोग
पगडंडियों पर
मिलते नहीं सहारे
गर होती एक लाठी तो
सफर आसान होता
मुकर्रर है शायद
किस्मत हर किसी की
तभी मिलते है
जख्म किसी को
गर होता मरहम पास तो
सफर आसान होता
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल