सफर जिन्दगी का
अजीबोगरीब था सफर मेरा,
शुरुआत में मैंने कोई शुरुआत ही न की,
निकला जब घर से अनजान था मैं,
रास्ते में भी किसी से मुलाकात ही न की,
दिल में जुनून था,उबलता मेरा खून था,
तपिश थी,लगन थी सफर में सुकून था,
न साथी कोई,न सहारा कोई था,
किसी ने किया न इशारा कोई था।
मैं आगे बढ़ा और बढ़ता गया,
सफर के सफर में सफर कर गया मैं।
सफर जिन्दगी का सुहाना सफर है,
सभी ने सफर से सफर ही किया है।
मैंने भी इस सफर के सफर को समझ के,
जिन्दगी के सफर को किया शुक्रिया है॥