सफर इन्सानियत का
हे इन्सान
तू इन्सान बन कर
रहना सीख
फरेब , चापलूसी जो
कूट कूट कर भरी है तुझ में
उससे निकल और
इन्सानियत से जीना सीख
ईश्वर ने दिया है
ये मानव शरीर
उसे मानवता और
नेक काम में लगा
तेरे काम ही
तेरी पहचान है
चाहे तो इज्जत
कमा ले
नहीं तो करोड़ों
इन्सान हैं यहाँ पर