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14 Jul 2024 · 1 min read

सफरसाज

जिंदगी के इस सफर में
न तो मंजिल का है पता।
मुकाम क्या है ये सफर का
ना ही जिंदगी देती है बता।।

हालात तो मिलते ही हैं
पर मिलते हैं बहुत चौराहे।
थोड़ा रुकता हूं हर चौराहे
फिर बढ़ता चाहे-अनचाहे।।

ये चार रास्ते चौराहे पर
जाने-अनजाने भटका देते।
कभी पहुंचाते मंजिल तो
कभी आधे में अटका देते।।

वो था कितना आसान
उंगली पकड़कर चल देना।
है कौन सा रास्ता सही
चलते-चलते ही पूछ लेना।।

अब तो यहां पग-पग पर
दिखाई देती है दुविधा।
उलझा लगता वो भी जो
रास्ता कभी लगा था सीधा।।

मैं जब चौराहे पे खड़ा होता
जिंदगी दोराहे पे खड़ा पाता।
लगता मुकाम मुश्किल में
और द्वंद हाॅ-ना में बड़ा पाता।।

इन रास्तों में मोड़ बहुत हैं
हर मोड़ मोड़ देता जिंदगी।
जब कोई मोड़ तोड़ देता
तो कोई लाता नई ताजगी।।

यही सफर है जिंदगी का
जिससे ही जिंदगी है बनती।
मंजिल तो आती पर; सफर की
थकान पहले ही सुला देती।।

ये सफर ही है मेरी मंजिल
ये सफर ही तो है मुकाम।
हमसफर बनाता दुनिया को
जिंदादिली सफर का पैगाम।।

ये सफर नही, कहानी मेरी
मेरी लिखी जिंदगी की है किताब।
किसी पन्ने पर सबक-किस्से
किसी पन्ने पर है सवाल-जवाब।।

इस अधूरे सफर और किताब में
जिंदगी के और भी किस्से तमाम हैं।
फिलहाल भूल जाता मंजिल को
वो मंजिल तो पूर्ण विराम है।।
~०~
जुलाई, २०२४. ©जीवनसवारो

Language: Hindi
108 Views
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