सप्तपदी के ग्यारह वर्ष
सप्तपदी के ग्यारह वर्ष
कैसे निकल गये……
उन अद्भुत क्षणों को सोच- सोच, मैं आज भी मंद -मंद मुस्काती हूं!
वह पल भी बड़ा सुहाना था, जब अजनबी बन हम पहली बार मिले थे।
आंँखों -आंँखों की बातों से हम इस रिश्ते से जुड़े थे!
जब तूने मुझको ,अपने रिश्तों की डोरी से बांधा है।
मैं भूल गई थी खुद को ,तुने मुझको इतना चाहा ।
हृदय से जुड़े हर रिश्ते को छोड़, जब तेरे कदमों से कदम मिलाया मैंने।
अजनबी से इस रिश्ते को अपनाकर ,तुमने अपने गले लगाया मुझको।
ऐ मेरे हमराही तूने, हर सुख -दुख में हर पल साथ निभाया ।
“शुचि” जीवन की बगिया को तुमने, प्रेम विश्वास से महकाया है।
यही कामना है अब ईश्वर से, सप्तपदी के ग्यारह वर्षों का हमारा रिश्ता,
हर क्षण विश्वास से महकता रहे।
डॉ माधवी मिश्रा” शुचि”
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश
#सप्तपदी