सपनों का शहर
अभी पूरा हुआ
अपना सफ़र नहीं
तू चला चल यहां
अपना गुज़र नहीं…
(१)
कहीं लूट तो
कहीं मार
कहीं चीख तो
कहीं पुकार
जिसका देखा
सपना हमने
यह तो हरगिज़
वह शहर नहीं…
(२)
शंबूक से लेकर
कबीरा तक
सीता से लेकर
मीरा तक
जिन्होंने सबको
अमृत बांटा
क्या मिला यहां
उन्हें ज़हर नहीं…
(३)
यह हिंदू तो
वह मोहम्मदन
तुम ब्राह्मण तो
मैं हरिजन
यहां लोगों के
बर्बर होने में
ऐ दोस्त,अब
कोई कसर नहीं…
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Shekhar Chandra Mitra
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