सपनों का भारत बन जा
सुख समृद्धि के मेरे सपने, उन सपनों का भारत बन जा।
तुझ पर न्यौछावर जो अपने, उन अपनों का भारत बन जा।।
अति विशेष कुछ नियम बना दे पालन जिनका आवश्यक हो।
हर नागरिक वचन कर्मों से राष्ट्रभक्ति का परिचायक हो।
मतदाता बनने की खातिर शपथपत्र देकर स्वीकारे।
पावन माटी का माथे पर तिलक सवेरे से ही धारे।
पहले मातृभूमि का वंदन फिर मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा।
जो न करे इसका अनुपालन उसका पुरस्कार हो कारा।
जो मेहनत के दीप जलाएं उनकी जगमग किस्मत बन जा।
तुझ पर न्यौछावर जो अपने उन अपनों का भारत बन जा।।
गुरुकुल, मकतब और मदरसे भले निजी या सरकारी हों।
शिक्षा की इन शालाओं में सम पाठ्यक्रम जारी हों।
सकल राष्ट्र के सब सूबों में पाठ्य पुस्तकें भी समान हों।
जब हिंदी का पूर्ण ज्ञान हो रोजगार के तब विधान हों।
राष्ट्रहितों को निज हित से ऊपर रखना अनिवार्य हो।
जीवन में दो वर्षों की सैनिक सेवा स्वीकार्य हो।
शिरोधार्य हो दुनियाभर में नीति नियंता समरथ बन जा।
तुझ पर न्यौछावर जो अपने उन अपनों का भारत बन जा।।
संविधान से परे व्यक्तिगत नियम अमान्य सभी कर दे।
शरीयत और शास्त्र सम्मत मत एक किनारे पर धर दे।
नम्र निवेदन है भारत माँ! संविधान संशोधित कर दे।
राष्ट्रधर्म ही मातृभूमि का मात्र धर्म अधिघोषित कर दे।
उनके अल्लाह, गॉड सभी को वायु में अवशोषित कर दे।
मेरे तेंतीस कोटि देवता पीपल तरु पर पोषित कर दे।
भक्ति भाव भर संतानों में उन्नत उन्नत पर्वत बन जा।
तुझ पर न्यौछावर जो अपने उन अपनों का भारत बन जा।।
संजय नारायण